जो चमक कपोलों पर ढुलके मोती में है
वह चमक किसी मोती में कभी नहीं होती,
सागर का मोती, सागर साथ नहीं लाता
अन्तर उंडेल कर ले आता कपोल मोती।
रोदन से, भारी मन हलका हो जाता है
रोदन में भी आनन्द निराला होता है,
हर आँसू धोता है मन की वेदना प्रखर
ताजगी और वह हर्ष अनोखा बोता है।
आँसू कपोल पर लुढ़क-लुढ़क जब बह उठते
लगता हिम-गिरि से गंगाजल बह उठता है,
हैं कौन-कौन से भाव हृदय में घुमड़ रहे
हर आँसू जैसे यह सब कुछ कह उठता है।
सन्देह नहीं, आँसू पानी तो होते ही
वे तरल आग हैं, और जला सकते हैं वे,
उनमें इतनी क्षमता भूचाल उठा सकते
उनमें क्षमता, पत्थर पिघला सकते हैं वे।
आँसू दुख के ही नही, खुशी के भी होते
जब खुशी बहुत बढ़ जाती, रोते ही बनता,
आधिक्य खुशी का, कहीं न पागल कर डाले
अतिशय खुशियों को, रोकर धोते ही बनता।
भावातिरेक से भी रोना आ जाता है
ऐसे रोदन को कोई रोक नहीं पाता,
रोने वाला, निस्र्पाय खड़ा रह जाता है
आगमन आँसुओं का, वह रोक नहीं पाता।
जो व्यक्ति फफक कर जीवन में रोया न कभी
उसके जीवन में कुछ अभाव रह जाता है,
दुख प्रकट न हो, भारी अनर्थ होकर रहता
रो पड़ने से, वह सारा दुख बह जाता है।
इतिहास आँसुओं ने रच डाले कई-कई
हो विवश शक्ति उनने अपनी दिखलाई है,
वे रहे महाभारत की संरचना करते
सोने की लंका भी उनने जलवाई है।
श्रीकृष्ण सरल जी की यह कविता और अन्य कई कविताएं कविता कोश में यहां पढी जा सकती हैं ।
मैं आज कविता कोश के उस पन्ने की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, जिसका रचयिता भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी कलम को तलवार बनाकर युद्ध में जूझता रहा। जिसने 15 महाकाव्य सहित 124 पुस्तकों का सृजन किया। जिसने अपनी पुस्तकें स्वयं के खर्चे पर प्रकाशित कराने के लिए अपनी ज़मीन ज़ायदाद बेच दी। जिसने अपनी पुस्तकें पूरे देश भर में घूम-घूम कर लोगों तक पहुँचायीं और अपनी पुस्तकों की 5 लाख प्रतियाँ बेची, लेकिन अपने लिए कुछ नहीं रखा। जो धनराशि मिली वह शहीदों के परिवारों के लिए चुपचाप समर्पित करता रहा। महाकवि होने के बाद भी जिसकी यह आकांक्षा रही कि उसे कवि या महाकवि नहीं बल्कि 'शहीदों का चारण' के नाम से पहचाना जाये।ऍसा व्यक्तित्व प्रचार का भूखा नहीं होता और न उसका प्रचार हुआ। व्यक्तिगत स्तर पर भी नहीं और शासन स्तर पर भी नहीं। लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है आने वाली पीढियाँ इस महान व्यक्तित्व के धनी, क्रान्तिकारियों के गुणगान करने और देशसेवा का व्रत लेने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महाकवि श्रीकृष्ण सरल को श्रृद्धा के साथ याद करेंगी और उनकी कालजयी देशभक्तिपूर्ण कविताओं को गुनगुनायेंगी।
' दुनियाँ की सबसे पहली कविता महर्षि वाल्मीकि के द्वारा तब रची गयी ,जब आकाश में स्वच्छन्द विचरण करते हुए क्रौञ्च पक्षियों के काम मोहित जोड़े में से एक को व्याध द्वारा मार दिया गया। क्रौञ्च को लहूलुहान धरती पर तड़फते देखकर कौञ्ची अत्यन्त करुणा युक्त होकर विलाप करने लगी। तब वहाँ उपस्थित महर्षि वाल्मीकि के हृदय से करुणा शब्दों के रूप में निकली ॰॰॰मा निषाद प्रतिष्ठां त्वामगमः शाश्वती समाः।
करुण रस को रसों का राजा माना जाता है। करुण रस को प्रकट करने के लिये आँसू से बढकर कोई साधन नहीं है.।इसीलिये ऐसा कवि खोजना मुश्किल है जिसने आँसू को अपनी कविता का आश्रय न बनाया हो। लेकिन जिस तरह श्रीकृष्ण सरल ने आँसू के सभी पक्षों ,उसकी सारी शक्तियों का वर्णन बहुत सुन्दर शब्दों में किया है, वह अद्भुत है।
यत् क्रौञ्च मिथुनादेकमवधीः काम मोहितम्।।सन्देह नहीं, आँसू पानी तो होते ही
वे तरल आग हैं, और जला सकते हैं वे,
उनमें इतनी क्षमता भूचाल उठा सकते
उनमें क्षमता, पत्थर पिघला सकते हैं वे।
हँसने के लाभ तो बाबा रामदेव जी से लेकर आधुनिक लाफ्टर शो के संचालक बताते नहीं थकते , पर रोने के भी लाभ होते हैं ,यह बात सरल जी को भली भाँति पता है॓॰॰॰॰॰रोदन से, भारी मन हलका हो जाता है
आँसू न केवल दुःखातिरेक के सूचक होते हैं वल्कि प्रेमातिरेक और हर्षातिरेक को प्रकट करने में भी वे ही काम आते हैं। लगता है कवि ने अपने जीवन में सभी प्रकार के आँसुओं का साक्षात्कार किया है, तभी तो पूरे आत्मविश्वास से कह पाता है॰॰॰॰
रोदन में भी आनन्द निराला होता है,
हर आँसू धोता है मन की वेदना प्रखर
ताजगी और वह हर्ष अनोखा बोता है।आँसू दुख के ही नही, खुशी के भी होते
कवि की सुस्पष्ट घोषणा है कि जो व्यक्ति फफक फफक कर रोना नहीं जानता उसका जीवन अधूरा है। उनका मानना हे कि जो व्यक्ति खुलकर कभी रोया ही न हो कुण्ठा ग्रस्त होकर दुःखों से भर जाता है।जो
जब खुशी बहुत बढ़ जाती, रोते ही बनता,
आधिक्य खुशी का, कहीं न पागल कर डाले
अतिशय खुशियों को, रोकर धोते ही बनता।व्यक्ति फफक कर जीवन में रोया न कभी
आँसू निकले और कोई परिणाम न हो ऐसा सम्भव नहीं है। जहाँ दुनियाँ में बड़ी से बड़ी समस्या आँसू से सुलझी है वहीं आँसुओं के कारण ही बड़ी समस्यायें खड़ी भी हुई हैं। कहा जा सकता है कि हर बड़ी घटना में कहीं न कहीं आँसू की भूमिका होती है॰॰॰॰
उसके जीवन में कुछ अभाव रह जाता है,
दुख प्रकट न हो, भारी अनर्थ होकर रहता
रो पड़ने से, वह सारा दुख बह जाता है।इतिहास आँसुओं ने रच डाले कई-कई
अन्त में महाकवि सरल जी के साहित्य को कविता कोश में स्थापित करने के लिये कविता कोश टीम को धन्यबाद देता हूँ और उस महान साहित्यकार को विनम्र श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ।
हो विवश शक्ति उनने अपनी दिखलाई है,
वे रहे महाभारत की संरचना करते
सोने की लंका भी उनने जलवाई है।
जब स्कूल में थी, कक्षा छठीं में, तब श्री कृष्ण सरल जी हमारे स्कूल में आये थे और अपनी देशभक्ति की कवितओं का पाठ किया था। उनका व्तक्तित्व अय्र कविता पाठ का ढंग हम सभी को अंदर तक झकझोर गया था। उनकी बाघा जतीन पर किताब आज भी मेरे पास है। कविताकोष से उनके पन्ने को उद्धृत कर इतनी सुंदरता के साथ उनकी रचना की व्याख्या करने का धन्यवाद कटारे जी।
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण सरल जी के साहित्य से परिचय कराने के लियेशास्त्री नित्य गोपाल कटारे का आभार!
जवाब देंहटाएंडा.रमा द्विवेदी
जवाब देंहटाएंआँसुओं का बहुत विशद वर्णन एवं कटारेजी की विस्तृत व्याख्या दोंनो ही सराहनीय हैं...धन्यवाद श्री कृष्ण सरल जी की रचनाओं से परिचय करवाने के लिए।
श्री कृष्ण सरल जी की रचनाओं से परिचय करवाने के लिए शास्त्री नित्य गोपाल कटारे जी का आभार!
जवाब देंहटाएंI am greatful to sh. Bhargava ji for overwhelming introduction to HIS HIGHNESS MAHAKAWI SHRIKRISHAN SARAL JI. Awareness to such divine people shall definitely lead to great sacrifices to happen....
जवाब देंहटाएंManoj Sharma, Panipat, haryana--09466172002
shrikrishna saral ji kai sahityik avdaan par shri Nitya gopal katare ji ka lekh padha,dhnyabad.
जवाब देंहटाएंmaine H.S.C.(m.p.)mai Saral ji ka geet "Tum ho yuvak aaj yug tumse yovan ki pahchan mangta.
manavta ki unchi neechi ghati ko tum samtal kar do,/shram ki ganga baha dhara par ,maruthal ko jeevan ka var do/ tum ho yuvak...../yah geet NIRJHARNNE mai tha.aaj bhi samyik hai.
Mahan deshbhakt rachnakar ko vinamra shradhajali arpit karta hoon.kavitakosh teem ko badhi.hamare sahitkar jan-jan ke ratan hai
unahe sahitik avdan kai liye BHARAT RATAN sammaan milna chhiye .
kamlesh kumar diwan(adhyapak evam Lekhak)
hoshangabad (M.P.)phone no 9425642458
E mail kamleshkumardiwan@gmail.com
kamleshkumardiwan.blogspot.com
me bahut dino se bhukha tha krantikari kavi shree krishna saral ji ki kavitaon ka kripaya saral ji ki kavitaon se mere jaise bhukho ki bhukh mitane ki kripa kare
जवाब देंहटाएंमैं बहुत दिनों से दादा श्री श्रीकृष्ण सरल जी की कविता "युवक से "को खोज रहा हूँ। यह कविता हमारी उस वक़्त की हिंदी टेक्स्ट बुक "निर्झरणी " में शामिल थी। कृपया जी किसी भी बंधु के पास हो तो मुझे मेल करे। r c soni184@gmail.com
जवाब देंहटाएंअखिलेश आनंद