गुरुवार, 9 जुलाई 2009

फूल और काँटा / अयोध्यासिंह हरिऔध

हैं जन्म लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता ।


मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवाएँ हैं बहीं
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं ।


छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ,
फाड़ देता है किसी का वर वसन
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भँवर का है भेद देता श्याम तन ।


फूल लेकर तितलियों को गोद में
भँवर को अपना अनूठा रस पिला,
निज सुगन्धों और निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला ।


है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर शीश पर,
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर ।
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अयोध्यासिंह हरिऔध जी की यह कविता और अन्य कविताएं आप कविता कोश में पढ सकते हैं।


लेख: शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
विश्व की अधिकांश कविताएँ देश, काल और परिस्थितियों पर आधारित लिखी गईं हैं। जो कविता स्थान विशेष की आवश्यकताओं के अनुरूप, वहाँ की संस्कृति, सभ्यता और व्यावहारिक रीति-नीति के पोषण के लिये लिखी जाती है उसे राष्ट्रवादी कविता कहते हैं। ऐसी कविताएं उस देश विशेष के लिये तो बहुत महत्वपूर्ण होती हैं किन्तु अन्य देशों के लिये उनका कोई महत्व नहीं होता। कुछ कविताएं समय की आवश्यकता के अनुसार लिखी जाती हैं, जो उस समय तो बहुत महत्वपूर्ण होती हैं किन्तु कालान्तर में उनका कोई महत्व नहीं रह जाता़।ऐसी कविता को सम सामयिक कविता कहते हैं। कुछ कविताओं की रचना परिस्थितिजन्य होती है, जो तत्कालीन परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार होती हैं जो उस परिस्थिति में तो आवश्यक प्रतीत होती हैं किन्तु परिस्थिति बदलने के बाद महत्वहीन हो जाती हैं। ऐसी कविता को पारिस्थितिक कविता कहते हैं। कुछ कविताएँ ऐसी भी होती हैं जो देश, काल, और परिस्थितियों की परिधि से बाहर होती हैं। वे न तो देश की सीमा में बँधी होती हैं और न समय के बन्धन में और न ही किसी परिस्थिति के अधीन होती हैं अपितु वे सभी देशों में, हर समय में और हर परिस्थिति में समान रूप से महत्वपूर्ण होती हैं उन्हें कालजयी कविता कहते हैं।

कविता कोश के पन्नों में से ऐंसी कालजयी कविताओं के रचयिताओं में से जगत प्रसिद्ध एक नाम है अयोध्या सिंह "हरिऔध "। हरिऔध जी की कविताएं देश, काल, और परिस्थितियों की सीमाओं में संकुचित न होकर संपूर्ण विश्व की धरोहर के रूप में आज विद्यमान हैं। उनकी एक बहुत प्रसिद्ध कविता है "फूल और काँटा"। ऐंसा कोई देश नहीं है जहाँ फूल और काँटा न हो, और न ही ऐंसा कोई समय रहा है और न रहने की सम्भावना ही है कि जब फूल और काँटे का अस्तित्व न हो। हर परिस्थिति में फूल और काँटों का अपना अपना महत्व होता है, इसीलिये यह कविता हर देश में, हर समय में, और हर परिस्थिति में अपना महत्व कम नहीं होने देती। फूल और काँटा कविता के द्वारा कवि संसार के एक बड़े रहस्य की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता है।आखिर क्या बात है कि एक ही परिवार में जन्म लेने वाले और एक जैसी ही परवरिश में पले बढे दो भाई परस्पर विपरीत स्वभाव के कैसे हो जाते हैं? कवि इस कविता के माध्यम से पुनर्जन्म के सिद्धान्त को भी परिपुष्ट करना चाहता है। व्यक्ति के स्वभाव में में पूर्व जन्मों के संस्कारों का बहुत बड़ा योगदान होता है, अन्यथा ऐसा कैसे हो सकता है?
जन्म लेते हैं जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता ।
मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवाएँ हैं बहीं
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं ।

मुख्यतः मुनष्य दो प्रकार के होते हैं धार्मिक और अधर्मी। धार्मिक व्यक्ति "सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्" की भावना से ओत-प्रोत रहकर सभी प्राणियों का हित करता है, और अधर्मी व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ के लिये दूसरों का अहित करता रहता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने धर्म और अधर्म की सबसे अच्छी परिभाषा की है:
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।


अधर्मी व्यक्ति को दूसरों को कष्ट पहुँचाने में आनन्द आता है। उससे दूसरों का सुख देखा ही नहीं जाता। लोगों को दुख पहुँचाने में ही वह सुख का अनुभव करता है। वह इसी काम में लगा रहता है जीवन भर काँटे की तरह।
छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ,
फाड़ देता है किसी का वर वसन
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भँवर का है भेद देता श्याम तन।


धार्मिक व्यक्ति हमेशा दूसरों के कष्ट को दूर करता है वह कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। उसका स्वभाव फूल जैसा होता है। वह दूसरों की प्रसन्नता के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है।

फूल लेकर तितलियों को गोद में
भँवर को अपना अनूठा रस पिला,
निज सुगन्धों और निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला।


कवि यह संदेश देना चाहता है कि केवल अच्छे खनदान में जन्म लेने से बड़ा नहीं हुआ जा सकता। बड़े होने के लिये बड़प्पन का होना निहायत जरूरी है। केवल ऐसा बड़ा होना किस काम का जिसकी छत्रछाया में किसी को आश्रय न मिले।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।


अच्छे और बुरे व्यक्ति की पहचान गोस्वामी तुलसी दास जी बताई है॰॰॰

मिलत एक दारुण दुख देही।
बिछुरत एक प्राण हर लेही।।


हरिऔध जी भी यही बात अपने ढंग से कहते हैं॰॰॰

है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर शीश पर,
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।


हरिऔध जी की सभी कविताएं विश्वबन्धुत्व का संदेश देने वाली हैं और जाति, वर्ग, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर आदर्श मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाली हैं।

17 टिप्‍पणियां:

  1. Larakpan ke dinon main parhi hui Kavita
    Yaad aayi thi .dobaara poori Kavita Padh kar aur uske vivechan Ko Padhkar Aanand as gaya

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  2. दूसरा है सोहता उसका अर्थ?

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  3. बडप्पन की कसर रह जानेपर क्या काम नही देती ?

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  4. कवि ने ऐसा क्यों कहा है कि ‘ढंग उनके एक से होते नहीं’?

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  5. रस का आनंद कौन और किस प्रकार से ग्रहण कर रहा है?

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